Monday, 19 March 2012
Wednesday, 7 March 2012
DTC
DTC (DIRECT TAX CODE)
विगत कुछ वर्षो से DTC भारत में एक गहन आर्थिक मुद्दा रहा है। और चूँकि अब से कुछ ही दिनों के अन्तराल पर संसद मे बजट पेश होने जा रहा है। और सरकार इसे लागु करने बात कर रही है, देखते है की हमारे माननीयों की समझ कहाँ तक समृद्ध है? लेकिन हमें समझाना होगा कि प्रस्तावित D.T.C. की क्या उपादेयता है? सरकार को अपनी विभिन्न वचन बद्द्ताओं को पूरा करने के लिए अनेक प्रकार के करों के रूप में राजस्व की प्राप्ति होती है, और इन करों को मुख्य रूप से दो वर्गों में बांटा गया है प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर । उदारीकरण के पश्चात किये गए सुधारों में कर-सुधारों में भी सुधार किये जाते रहे है(विशेषकर chelliah committee, kelkar committee की अनुशंषाओं पर ) । यह ध्यान रहे कि कर सुधारों से पूर्व प्रत्यक्ष कर का हिस्सा कुल के पांचवे हिस्से से भी कम था. इन सुधारों के मार्फ़त प्रत्यक्ष कर के अंश में वृद्धि हुई है जो स्पष्ट करता है कि इसके माध्यम से समाज मे आर्थिक समता मे वृद्धि हुई है। यह ध्यान रहे कि प्रत्यक्ष कर के अंतर्गत उत्पादन तथा व्यापर पर कर लगाने के बजाय व्यक्तियों की आय पर कर लगाया जाता है जो कि समतामूलक कर होता है और वहीं वस्तुओ और सेवाओ पर लगने वाला कर, निम्न आय वालों पर तथा उच्च आय वालों पर सामान रूप से लगता है जो कि न्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता। DTC (प्रत्यक्ष कर संहिता ) प्रत्यक्ष कर प्रणाली को और सुद्रढ़ बनाने के लिए प्रस्तावित है जिसमे कि सुधार की गुन्जाईस हो सकती है, लेकिन यह कहना होगा कि डटक प्रत्यक्ष कर कानूनों को कुशल एवं प्रभावशाली बनाने की ओर लक्षित है। इससे जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि DTC भारत मे कर राजस्व -GDP अनुपात कि वृद्धि मे भी सहायक होगा जो लगभग २० वर्षों से लगभग १०% पर स्थिर बना हुआ है।(1990-91 -->10.11% तथा 2011-2012--> 10.38)
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